income tax department: भारत में प्रत्येक नागरिक जो आयकर के दायरे में आता है, उसे अपनी आय के अनुसार कर भुगतान करना अनिवार्य है। जब कोई व्यक्ति कर चोरी करता है या अपनी वास्तविक आय छुपाता है, तो आयकर विभाग उसके विरुद्ध कार्रवाई करता है। हालांकि, आयकर विभाग की शक्तियां असीमित नहीं हैं और उन्हें निर्धारित नियमों के अनुसार ही कार्रवाई करनी होती है। विभाग अपनी मनमर्जी से किसी भी समय पुराने मामलों को नहीं खोल सकता है। इसके लिए कानूनी प्रावधानों का पालन करना आवश्यक है।
आयकर रिटर्न की महत्वता और जिम्मेदारी
आयकर रिटर्न दाखिल करना प्रत्येक करदाता की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। जब कोई व्यक्ति अपनी वास्तविक आय का सही विवरण नहीं देता या जानबूझकर कम आय दिखाता है, तो यह कर चोरी माना जाता है। आयकर विभाग ऐसे मामलों की जांच करने में देरी नहीं करता और उचित कार्रवाई करता है। कई बार ऐसे मामले सालों बाद सामने आते हैं, लेकिन विभाग को इन्हें खोलने के लिए निर्धारित समय सीमा का पालन करना होता है। टैक्स से संबंधित हर काम को बेहद सावधानी और बारीकी से करना आवश्यक है।
दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
दिल्ली हाईकोर्ट ने आयकर मामलों से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो करदाताओं के हितों की रक्षा करता है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आयकर विभाग तीन साल से अधिक पुराने मामलों को सामान्य परिस्थितियों में नहीं खोल सकता है। यह निर्णय विशेष रूप से उन मामलों के लिए लागू है जहां 50 लाख रुपए से कम की आय में गड़बड़ी का आरोप है। हालांकि, यदि 50 लाख रुपए से अधिक की आय छुपाने या गंभीर धोखाधड़ी के मामले हैं, तो विभाग 10 साल तक पुराने मामलों को खोल सकता है।
कानूनी सीमाओं और नियमों का विवरण
न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि तीन साल की अवधि बीतने के बाद आयकर विभाग किसी भी करदाता को सामान्यतः नोटिस नहीं भेज सकता है। यह कानूनी सीमा (Law of Limitation) के कारण लागू होता है। यदि विभाग को तीन साल बाद कोई मामला खोलना है, तो उसे कुछ विशेष नियमों और शर्तों का पालन करना होगा। इसका मतलब यह है कि छोटी गलतियों या कम राशि की अनियमितताओं के लिए करदाताओं को वर्षों बाद परेशान नहीं किया जा सकता है। यह व्यवस्था करदाताओं को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाई गई है।
बजट 2021-22 में किए गए महत्वपूर्ण बदलाव
वित्त मंत्रालय ने बजट 2021-22 के दौरान रिअसेसमेंट से संबंधित नया आयकर कानून बनाया था। इस नए कानून के तहत रिअसेसमेंट की अवधि को पहले के छह साल से घटाकर तीन साल कर दिया गया है। यह बदलाव करदाताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए किया गया था। हालांकि, 50 लाख रुपए से अधिक की आय में हेराफेरी और गंभीर धोखाधड़ी के मामलों में अभी भी 10 साल तक रिअसेसमेंट की जा सकती है। यह प्रावधान बड़े कर चोरी के मामलों से निपटने के लिए रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अभिसार बिल्डवेल मामले में एक और महत्वपूर्ण फैसला दिया था जो आयकर विभाग की शक्तियों को सीमित करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आयकर कानून की धारा 153-ए के तहत रिअसेसमेंट की कार्यवाही के दौरान विभाग किसी करदाता की आय में बिना ठोस सबूत के कोई इजाफा नहीं कर सकता है। इसका मतलब यह है कि विभाग के पास पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत होने चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 147 और 148 के तहत उचित परिस्थितियों में रिअसेसमेंट को बहाल किया जा सकता है।
नई धारा 148ए के प्रावधान
वित्त अधिनियम 2021 में धारा 148ए को शामिल किया गया है जो विभाग को विशेष परिस्थितियों में 10 साल पुराने मामलों को खोलने की अनुमति देती है। लेकिन इसके लिए कम से कम वार्षिक आय 50 लाख रुपए से अधिक होनी चाहिए। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अनुसार, पुराने मामलों को खोलते समय यह आय सीमा अनिवार्य रूप से लागू होगी। इसका सीधा मतलब यह है कि 50 लाख रुपए से कम वार्षिक आय वाले करदाताओं के तीन साल से पुराने मामलों को आयकर विभाग नहीं खोल सकता है।
करदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा
ये नए नियम और न्यायालयी फैसले करदाताओं के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं। छोटे और मध्यम आय वर्गीय करदाताओं को अब वर्षों बाद अनावश्यक नोटिस और जांच का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह व्यवस्था कानूनी स्पष्टता प्रदान करती है और करदाताओं में विश्वास बढ़ाती है। हालांकि, बड़े कर चोरी के मामलों में विभाग की शक्तियां बरकरार रखी गई हैं ताकि गंभीर अपराधियों से बचा न जा सके।
Disclaimer
यह लेख विभिन्न न्यायालयी फैसलों और सरकारी नीतियों के आधार पर तैयार किया गया है। आयकर से संबंधित सभी नियम और कानून समय-समय पर बदलते रहते हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे किसी भी कानूनी मामले में कार्रवाई करने से पहले योग्य कर सलाहकार या चार्टर्ड अकाउंटेंट से सलाह लें। यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है और इसे कानूनी सलाह नहीं माना जाना चाहिए।