वसीयत ना होने पर पिता की प्रोपर्टी में बेटी का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला Supreme Court Decision

By Meera Sharma

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Supreme Court Decision

Supreme Court Decision: भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार कानून के संबंध में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जो महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मजबूत करता है। इस निर्णय के अनुसार यदि कोई हिंदू पुरुष बिना वसीयत बनाए मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसकी स्वअर्जित और अन्य संपत्तियों पर उसकी बेटियों को प्राथमिकता मिलेगी। यह फैसला पारंपरिक सामाजिक सोच में एक क्रांतिकारी बदलाव लाता है और लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्णा मुरारी की पीठ ने 51 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में स्पष्ट किया है कि बेटियों को पिता के भाइयों के बच्चों की तुलना में संपत्ति में वरीयता दी जाएगी। यह निर्णय उन सभी हिंदू परिवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जहां संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद होते रहते हैं। इस फैसले से हिंदू महिलाओं और विधवाओं के संपत्ति अधिकार काफी मजबूत हो गए हैं।

स्वअर्जित संपत्ति में बेटी के समान अधिकार

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बेटियों को बेटों के समान हिस्सेदारी का अधिकार है। यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति तक सीमित नहीं है बल्कि पिता की स्वअर्जित संपत्ति में भी समान रूप से लागू होता है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा उसके सभी बच्चों के बीच समान रूप से किया जाना चाहिए। यह सिद्धांत पुराने समय की उस सोच को खारिज करता है जिसमें केवल पुत्रों को ही संपत्ति का अधिकारी माना जाता था।

इस निर्णय का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बेटी का अधिकार पिता की मृत्यु के साथ ही स्थापित हो जाता है और इसके लिए किसी अन्य पुरुष कानूनी उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति आवश्यक नहीं है। न्यायालय ने पारंपरिक हिंदू कानूनों और विभिन्न न्यायिक निर्णयों का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया है कि विधवा या बेटी का हक हमेशा से ही बरकरार रहा है। यह फैसला उन सभी मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करता है जहां पिता के भाई का बेटा जीवित है लेकिन फिर भी बेटी का अधिकार सर्वोपरि रहेगा।

पारिवारिक संपत्ति में वरीयता का सिद्धांत

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि मृत पिता की संपत्ति में उसकी बेटियों को उसके भतीजे-भतीजियों से अधिक वरीयता प्राप्त है। यह सिद्धांत हिंदू उत्तराधिकार की पारंपरिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सुधार है। पहले अक्सर यह समस्या आती थी कि पिता की मृत्यु के बाद उसके भाइयों के बच्चे संपत्ति पर दावा करते थे और बेटियों को उनके वैध अधिकार से वंचित रखने का प्रयास करते थे। अब यह फैसला इस तरह की सभी समस्याओं का समाधान प्रदान करता है।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि पिता के कोई पुत्र नहीं है तो उसकी बेटी को पूरी संपत्ति का अधिकार है। यह अधिकार स्वअर्जित संपत्ति के साथ-साथ पारिवारिक संपत्ति पर भी लागू होता है। इस निर्णय से उन हजारों महिलाओं को न्याय मिलेगा जो लंबे समय से अपने पिता की संपत्ति में अपने वैध हिस्से के लिए संघर्ष कर रही थीं। यह फैसला विशेष रूप से उन एकल बेटियों के लिए राहत की बात है जिनके कोई भाई नहीं हैं।

हिंदू महिला की मृत्यु पर संपत्ति का बंटवारा

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि यदि किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति का बंटवारा इस आधार पर होगा कि वह संपत्ति उसे कहां से प्राप्त हुई थी। जो संपत्ति उसे अपने मायके से यानी पिता या माता से विरासत में मिली है वह वापस उसके पिता के वारिसों को मिलेगी। इसमें उसके सगे भाई-बहन और अन्य वैध उत्तराधिकारी शामिल हैं। यह सिद्धांत संपत्ति को उसके मूल स्रोत पर वापस भेजने के सिद्धांत पर आधारित है।

दूसरी ओर जो संपत्ति महिला को अपने पति या ससुर से प्राप्त हुई है वह उसके पति के वारिसों को मिलेगी। इसमें मुख्य रूप से उसके अपने बच्चे और पति के अन्य वैध उत्तराधिकारी शामिल हैं। हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 15(2) का मूल उद्देश्य यही है कि निसंतान हिंदू महिला की संपत्ति उसके मूल स्रोत को वापस मिल जाए। यह व्यवस्था न्यायसंगत है क्योंकि यह संपत्ति को उसकी मूल पारिवारिक श्रृंखला में बनाए रखती है।

मद्रास हाई कोर्ट के फैसले का खंडन

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इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने पहले बेटी के संपत्ति के दावे को खारिज कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि पिता की संपत्ति स्वअर्जित है तो उनकी एकमात्र जीवित बेटी को ही वह विरासत में मिलेगी। यह निर्णय इस बात को दर्शाता है कि निचली अदालतों में कभी-कभी कानून की गलत व्याख्या हो जाती है और ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप आवश्यक होता है।

मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलटना इस बात का प्रमाण है कि न्यायपालिका महिला अधिकारों के प्रति कितनी संवेदनशील है। यह निर्णय उन सभी महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है जो अपने पिता की संपत्ति में अपने वैध हिस्से के लिए न्यायालयों का दरवाजा खटखटा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश गया है कि कानून की नजर में बेटे और बेटी समान हैं और दोनों को पिता की संपत्ति में बराबर का हक है।

सामाजिक परिवर्तन और कानूनी सुधार

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यह फैसला न केवल एक कानूनी निर्णय है बल्कि एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत भी है। पारंपरिक भारतीय समाज में लंबे समय से यह मान्यता रही है कि संपत्ति का अधिकार मुख्यतः पुरुषों का है। लेकिन यह फैसला इस सोच को पूरी तरह से बदल देता है और लैंगिक समानता की दिशा में एक मजबूत कदम उठाता है। अब बेटियों को पता है कि कानून उनके साथ है और वे अपने वैध अधिकारों के लिए लड़ सकती हैं।

इस निर्णय का व्यापक सामाजिक प्रभाव होगा क्योंकि यह महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएगा। जब महिलाओं के पास संपत्ति होगी तो वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगी और समाज में उनकी स्थिति बेहतर होगी। यह फैसला उन परिवारों को भी संदेश देता है जो अभी भी बेटियों को संपत्ति में हिस्सा देने से झिझकते हैं। कानूनी स्पष्टता से अब ऐसे विवादों में कमी आएगी और पारिवारिक रिश्तों में सुधार होगा।

भविष्य के लिए दिशा-निर्देश और सुझाव

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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य के सभी संपत्ति विवादों के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है। अब निचली अदालतों को भी इस फैसले का पालन करना होगा और महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को प्राथमिकता देनी होगी। यह निर्णय कानूनी पेशे से जुड़े लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब वे अपने मुवक्किलों को सही सलाह दे सकेंगे। वकीलों और न्यायाधीशों को इस फैसले की बारीकियों को समझना होगा ताकि वे इसका सही प्रयोग कर सकें।

परिवारों को भी इस फैसले को समझकर अपनी वसीयत और संपत्ति नियोजन करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति चाहता है कि उसकी संपत्ति का बंटवारा कानून के अनुसार न होकर उसकी इच्छा के अनुसार हो तो उसे एक स्पष्ट वसीयत बनानी चाहिए। वसीयत के अभाव में अब यह फैसला लागू होगा और बेटियों को समान अधिकार मिलेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि लोग अपनी संपत्ति के नियोजन में महिला सदस्यों के अधिकारों को ध्यान में रखें।

Disclaimer

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यह लेख सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले पर आधारित है और सामान्य जानकारी के लिए है। संपत्ति संबंधी कानूनी मामलों में व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार अंतर हो सकता है। किसी भी कानूनी सलाह के लिए योग्य वकील से संपर्क करें। कानूनी नियमों में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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